गुरुवार को हुई सुनवाई में, जहां दशक पुराने निर्माण लेन-देन को लेकर कई तीखे तर्क और जवाब सामने आए, सुप्रीम कोर्ट ने ठेकेदार रॉकी की वह अपील खारिज कर दी जिसमें उसने लंबित कारोबारी विवाद से जुड़े आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की थी। पीठ-जिसने मामले पर काफी देर तक सुनवाई की-ने स्पष्ट कर दिया कि ठेकेदार के बार-बार यह कहने के बावजूद कि यह सिर्फ एक व्यावसायिक मतभेद है, इस आपराधिक केस को इतनी आसानी से साइड में नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि
विवाद की शुरुआत 2008 से 2010 के बीच किए गए निर्माण कार्य से हुई। दोनों पक्षों ने जून 2010 में एक नो-ड्यूज सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन रिश्ते जल्द ही खराब हो गए और आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए। आखिरकार 2015 में एक एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें रॉकी पर धोखाधड़ी, अवैध निरुद्धीकरण और धमकी देने का आरोप लगाया गया।
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हाई कोर्ट ने पहले 406 आईपीसी (आपराधिक न्यास भंग) का आरोप हटाकर राहत दी थी, लेकिन 420, 344 और 506 आईपीसी के तहत कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दे दी थी। इससे असंतुष्ट रॉकी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और पूरे मामले को रद्द कराने की मांग की।
अदालत की टिप्पणियां
सुनवाई की शुरुआत से ही पीठ यह मानने को तैयार नहीं दिखी कि मामला सिर्फ एक ठेकेदार और ग्राहक के बीच का अनुबंधीय मतभेद है। जजों में से एक ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “सिविल विवाद का अस्तित्व आपराधिक दायित्व को खत्म नहीं कर देता। दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।”
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अदालत ने जांच के दौरान दर्ज चार गवाहों के बयान भी महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि शुरुआत के स्तर पर इन्हें खारिज नहीं किया जा सकता। फैसले में दर्ज है, “इन दावों को इस चरण में न तो असंगत कहा जा सकता है, न ही इतना अविश्वसनीय कि इन्हें देखते ही ख़ारिज कर दिया जाए।”
रॉकी द्वारा प्रस्तुत नो-ड्यूज सर्टिफिकेट-जिसे उसने भुगतान न होने के आरोपों के खिलाफ मुख्य आधार बताया-को भी कोर्ट ने निर्णायक नहीं माना। शिकायतकर्ता ने इसे झूठा और मनगढ़ंत बताया है, और कोर्ट ने साफ कहा कि इसकी सत्यता का निर्धारण ट्रायल में ही हो सकता है।
पीठ ने कहा, “जब किसी दस्तावेज़ की प्रामाणिकता ही गंभीर विवाद में हो, तो उसे आधार बनाकर कार्यवाही को शुरुआती चरण में रद्द नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द करने की सीमाओं को दोहराया और कहा कि यह शक्ति केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही प्रयोग की जानी चाहिए। कोर्ट ने पहले के फैसलों-जैसे भजन लाल-का हवाला देते हुए कहा कि यह मामला उन श्रेणियों में नहीं आता जहाँ प्राथमिकी या आरोप स्वतः असंभव या अविश्वसनीय प्रतीत हों।
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निर्णय
अपना विश्लेषण समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तेलंगाना हाई कोर्ट का निर्णय बिल्कुल सही था और उसे हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
जजों ने कहा, “हम हाई कोर्ट द्वारा कार्यवाही रद्द न करने में कोई अवैधता या त्रुटि नहीं पाते। आरोपों की पूर्ण जांच ट्रायल में ही होनी चाहिए।”
इसके साथ ही, अपील खारिज कर दी गई और मामले को हैदराबाद की मजिस्ट्रेट अदालत में चलने दिया जाएगा।
Case Title: Rocky v. State of Telangana & Anr.
Case Number: Criminal Appeal (arising out of SLP (Crl.) No. 11151 of 2025)
Case Type: Criminal Appeal (Challenge to refusal to quash criminal proceedings under Section 482 CrPC)
Decision Date: December 04, 2025








